Thursday, 27 September 2018

जिंदगी

दो हिस्सों में, बटी हैं जिंदगी,
दोनों से हैं, मेरी बंदगी ।
एक, पलकों के इस पार,
एक, पलकों के उस पार ।
इस पार, कुछ सपने अधूरे ,
उस पार, दुनिया हकीकत से परे ।
इस पार, है बस दुनियादारी ,
उस पार, हर बात सुनहरी । 
इस पार है, जीने की जगह ,
उस पार है, जीने की वजह ।
दोनों की सरहदे हैं , मुंदी पलके, 
डरती हूँ .......
कहीं, एक दुसरे में न छलके ।
.............निलिमा देशपांडे । ११/०७/२०१८, नवीन पनवेल ।

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