Wednesday, 27 June 2018

ए दोस्त

ए दोस्त .....
आखिरकार जब पुंछ ही ली, तुमने हमारी खैरीयत,
कह न पाए, " हमें तुमसे नहीं,  जिंदगी से हैं शिकायत"

देखो, निभा न पाए, आज भी हम दुनियादारी,
कह न पाए, " सुनाओ कुछ तुम्हारी, सुनो कुछ हमारी "

गुमराह कर दिया तुम्हें, हमारी मुस्कुराहट ने,
कह न पाए, " ये करिश्मा किया है, तुम्हारी आहट ने"

पुछते गर तुम, "रहते हो क्यों आजकल गुमसुम ? "
कह न पाते, " हो खयालों में, बस तुम ही तुम "

पुछते गर तुम, " किस बात पर है नाराजगी? "
कह न पाते, " अहम् है जिंदगी में, तुम्हारी  मौजूदगी "
..........निलिमा देशपांडे ।
१७/०५/२०१७, नवीन पनवेल ।

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