पता था हमें......
हम आपकीं मंजिल तो कभी थे हीं नहीं।
फिर बिछा दिया खुद को.....
आपके पैरोंतले।
बन गये आपकी राह।
सोचा......
मंजिल तक साथ तो रहेगी।
फिर सजा लिया खुद को......
अरमानों की कलियों से,
जज्बातों के फुलों से।
ताकि......
आसान हो आपका सफर।
पर नादान थे हम।
समझ न पाएँ......
राहगिर की नजर मंजिल पर होती हैं.....
राह पर नहीं।
फिर न जाने क्या हुआ!
कुछ देर हमे रोंध कर....
चल दिये आप किसी नए मोड़ पर।
शायद हमसे भी ज्यादा आसान राह थीं ?
या आपको चुनौतीयाँ ही पसंद थीं?
अब सोचते हैं......
काश....
रख देते......
थोडे मुश्किलों के कंकर ,
या चुनौतीयों के पत्थर,
दुःखों के काटे,
असफलता के गढ्डे,
तो हो जाते परेशान.....
लग जाती कहीं ठेस......
कभी चुभन महसूस करते......
या तो गिर जाते कभी कभार......
तो कोसने के लिए हीं सही.......
नजरें झुकाकर......
एक बार तो हमारी तरफ देखते.......
एक बार तो हमारी तरफ देखते.......
..............निलिमा देशपांडे।
हम आपकीं मंजिल तो कभी थे हीं नहीं।
फिर बिछा दिया खुद को.....
आपके पैरोंतले।
बन गये आपकी राह।
सोचा......
मंजिल तक साथ तो रहेगी।
फिर सजा लिया खुद को......
अरमानों की कलियों से,
जज्बातों के फुलों से।
ताकि......
आसान हो आपका सफर।
पर नादान थे हम।
समझ न पाएँ......
राहगिर की नजर मंजिल पर होती हैं.....
राह पर नहीं।
फिर न जाने क्या हुआ!
कुछ देर हमे रोंध कर....
चल दिये आप किसी नए मोड़ पर।
शायद हमसे भी ज्यादा आसान राह थीं ?
या आपको चुनौतीयाँ ही पसंद थीं?
अब सोचते हैं......
काश....
रख देते......
थोडे मुश्किलों के कंकर ,
या चुनौतीयों के पत्थर,
दुःखों के काटे,
असफलता के गढ्डे,
तो हो जाते परेशान.....
लग जाती कहीं ठेस......
कभी चुभन महसूस करते......
या तो गिर जाते कभी कभार......
तो कोसने के लिए हीं सही.......
नजरें झुकाकर......
एक बार तो हमारी तरफ देखते.......
एक बार तो हमारी तरफ देखते.......
..............निलिमा देशपांडे।