Monday, 15 February 2016

बचपन

मुझे याद हैं •••••

कल तक , था एक बचपन,  

हसता, खेलता, मेरे ऑंगन ।

छोटी सी बात पर रोता,  रूठता ,

बिना किसी बात पर खिलखिलाकर हसता ।

दुनिया से बेखबर , 

दूनियादारी से बेअसर ।

ऑंखो में मासुमियत, 

ढेर सारी दुलार कि चाहत ।

जीने के प्रति विश्वास , 

जिंदगी से भरी , हर साॅस ।

वो बचपन••••

गले में बाहें डालकर बिलगता, 

" पापा " कहकर पुकारता ।

और मैं ••••

घर की दहलीज के भीतर जब भी आता, 

सारी परेशानियों को , भूल जाता|

मानो समय को रोक लेता, 

बस्स ! सारी जिंदगी,उसी पल मे जी  लेता ।


और फिर आज अचानक ••••

वो प्यारासा बचपन हुआ था , लापता, 

दरवाजे की दस्तक पुंछ रही थी , मेरा पता ।

अजनबी कोई,  पुरानी पहचान जताता,

ऑंखो से ,वही प्यार बरसाता ।

पर अब बातों में था आत्मविश्वास,  

खुद की शक्सियत का एक एहसास ।

मुस्कान तो वही थी, प्यारीसी ,

पर अब लग रहीं थीं, थोड़ी सयानीसी ।

" पापा " ! ••अरे , ये पुकार भी तो वही थी,

पर अब गले लगने में,  हिचहिचाहट क्यों थी ?

ढुंढ रहा था मैं,  उस बचपन का साया, 

नासमझ मैं,  इतना भी समझ न पाया •••••

वही तो थी , मेरी नन्ही सी गुड़िया, 

न जाने कब , बड़ी हो गयी मेरी बिटिया ।

•••••••••••••निलिमा देशपांडे।